Saturday, November 05, 2005

गर्ग बुक डिपो एवं विज्ञान प्रगति

अाज बाजार में टहलते हुए मेरी निगाह एक दुकान के नाम पर पडी। एक ही क्षण में अनगिनत यादें अाँखों के सामने से गुजर गयी। यह वही दुकान है जहाँ हम हर रोज जाकर सुपर कमांडो ध्रुव, चाचा चौधरी अौर नागराज की कॅामिक्स लाते थे। इसके अलावा मैं हर महीने विज्ञान प्रगति भी खरीदता था। मेरी विज्ञान तथा प्रौद्दोगिकी में रुचि विकासित होने में विज्ञान प्रगति का बहुत ही बडा हाथ रहा है। इसी पत्रिका में मैने पहली बार इ-मेल, सेल फोन एवं अन्य कई चीजों के बारे में पढा।

अाज लगभग ८ साल बाद मैने इसे खरीदने में एक क्षण भी नहीं खोया। तब मैं हर माह ५ रूपये में विझान प्रगति लेता था, अाज इसका मूल्य १२ हो गया है। मैंने जयन्त नार्लीकर तथा अन्य वैझानिकों के लेख तथा विज्ञान साहित्य की कहानियां पहली बार यहीं पढी। शायद विज्ञान साहित्य की तरफ मेरा रुझान ऐसे ही बना (मुझे science fiction के लिए प्रचलित शब्द विज्ञान गल्प पसन्द नहीं, मैं इसे साहित्य मानता हूँ। मुझे फोरेन्सिक विज्ञान के लेख भी बहुत पसन्द अाते थे, उन्हे शायद विधी विझान के लेख कहा जाता था।

सरसरी निगाह डालने पर पाया कि फोरेन्सिक विज्ञान के लेख पत्रिका से गायब हैं। बाकी पत्रिका पूरी पढने के बाद।

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