Now that I have found that typing in hindi and spanish is relatively very easy, I tried to translate a wikipedia article on
Ghalib. I realized that I have not written (or typed) at any length in Hindi in years in I make a lot of mistakes in spellings and my vocabulary has also left me since :( Of course once I have done complete translation I wil correct all the grammaticall errors related to usage of singular and plural pronouns and verb forms :)
Here is the partially translated article, once I have finished complete translation I might upload it on
हिन्दी विकि
मिर्जा असदुल्ला बेग खान गालिब (उर्फ मिर्जा गालिब) (दिसंबर २७, १७९७ - फरवरी १५, १८६९) एक भारतीय शायर थे। गालिब उर्दु तथा फारसी मे कविताएं (गजल) लिखते थे। वे तीन प्रमुख गजल लेखकों मे से एक माने जाते हैं।
अपने समय के प्रभावी कवी होने के साथ-साथ गालिब एक अथक पत्र लेखक भी थे। अपने समय के बारे मे लिखे गये उनके शेर, पत्र एवं गीतों का मिश्रण एक बहुत ही अच्छा इतिहासकारी कार्य है।
शायद गालिब उतनी बडी शख्शियत नहीं थे जितना उनकी जीवनगाथा लिखने वालों, प्रमुखतया मौलाना हाली ने उन्हे बनाने की कोशिश की है। वो अपना जीवनयाचन करने के लिये समझौते से उपर नहीं थे।
विषय सूची
१ गालिब का बचपन
२ नौजवान गालिब
३ कठिन समय
४ कवी गालिब
५ मुस्तफा खान शेफ्ता
६ गालिब के जीवन का नया अध्याय
७ विरक्त गालिब
८ एक महान कवी को श्रद्धांजलि
९ विषश टिप्पणी
१० सम्बधित लेख
११ बाहरी सामग्री (links)
गालिब का बचपन
गालिब का बचपन राजसी शानो-शौकत मे बीता, एस समय भारत मे राष्ट्रीयता का जन्म नहीं हुअा था एवं समाज कई वर्गों मे बटा था। हम देखते हैं की वो काफी खुश था लेकिन तभी तक जब तक उसके पिता एवं चाचा जीवित थे। उनके मरणोपरान्त गालिब उनके चचेरे भाइयों के संयुक्त परिवार का हिस्सा बन गये।
१० वर्ष की अवस्था मे ही गालिब कवितायें लिखने लगे थे, ये कवितायें उनकी सर्वश्रेष्ठ रचनाओं मे से नही परन्तु उनमे एक भावी कवी कि झलक नजर अाने लगी थी। उनकी रचनाएं मीर ताकी मीर, जोकि अपने समय के प्रभावी कवी थे और अपने समय के अन्य कवियों के अालोचना के लिये जाने जाते थे, को भी दिखायी गयी। मीर ने टिप्पणी दी, यदि एक काबिल उस्ताद (योग्य गुरु) मिल जाये तो गालिब एक महान कवी बन सकते हैं।
अन्तत: गालिब को उसे सिखाने वाले मिल गये, किसी एक व्यक्ति के स्वरूप मे नहीं, परन्तु उनके अास पास के वातावरण मे। सही ढंग से उर्दू कविता लिखना कडे परिश्रम तथा निर्रथक अध्याय का काम था।
नौजवान गालिब
गालिब ने दिल्ली को अपनी कर्मभूमि बना लिया था। उनका घर, जो बल्लीमरन अौर गली कासिम जान के कौने पे था, पारम्परिक दिल्ली की इमारतों जैसा था: इस घर का सामने वाला हिस्सा ईंट की ऊँची दिवार थी तथा घर की अन्य दीवारें बीच के चौक को घेरती थी। क्योंकि उन्हे अकेले समय चाहिये था यह घर उनके लिये अच्छा था।
गालिब अभी से उस निखरे हुए अंदाज मे लिखने लगे थे जो उनकी शायरी को बाकी सबसे अलग करता है। "गालिब दो तरह के हैं", वो कहते थे। "एक सेल्जुक तुर्क जो बादशाहों से मिलता है और दूसरा गरीब, कर्जे मे डूबा और अपमानित।" गालिब, सारे जीवन भर अपनी कम अाय से उनके वर्ग के अनुरूप जीवनयापन करने की समस्या से जूझते रहे।
गालिब अपने समय और शहर का एक अभिन्न अंग थे। उन्होने तवायफों को बिना किसी अापत्ति के अपनाया और २३ वर्ष की उम्र मे उनके जीवन का सबसे दर्दनाक प्रेम संबंध हुअा। उन्होने बाद मे इसके बारे मे लिखा, लेकिन हम उस लडकी के बारे मे कुछ नही जानते, जो शायद कम उम्र मे ही भगवान को प्यारी हो गयी। “In the days of my youth, when the blackness of my deeds outdid the blackness of my hair and my heart held the tumult of the love of fair-faced women. Fate poured into my cup too the poison of this pain, and as the bier of my beloved was borne along the road, the dust rose from the road.” (ghushe can you tell which sher is it?)
कठिन समय
उनके समय तथा वर्ग के अधिकतर मुस्लिम लोगों की तरह, गालिब हमेशा अपनी अाय से ज्यादा खर्च कर रहे थे। उनके मेहनताने की कहानियाँ बहुत बार कही जा चुकी हैं। उन्होने ये लडाई हारने से पेहले सालों-साल लडी। कहा जाता है कि जव वे कर्जे मे सिर तक डुबे थे, वो अपने घर से बाहर भी नहीं निकलते थे। लेकिन एक बार उनहे दरबार मे हाजिर होना पडा। न्यायाधीश ने गालिब से पूछा कि वो अपने बचाव मे क्या कहना चाहते हैं। गालिब ने उत्तर दिया, "Indeed I drank on credit but also knew for sure my spend-thrift poverty one day, my ruin would procure" (ghushe help, yeh bhi koi famous sher hai kya?), न्यायाधीश ने गालिब के खिलाफ न्याय किया लेकिन बडप्पन दिखा के दण्ड खुद ही अदा कर दिया।
कवी गालिब
इसी बीच गालिब तीव्र गति से अच्छी शायरी लिख रहे थे। उन्होने अपना पेहला उर्दू काव्य संग्रह १८२१ मे एकत्रित किया। चार साल बाद एक विख्यात पुस्तिका, पंज अहंग मे उन्होने फारसी पत्र लेखन के सामान्य नियम लिखे। सन् १८२८ मे उन्होने गुल-इ-राना, एक उर्दू तथा फारसी शायरी का संग्रह लिखा। उनकी उर्दू दीवान पेहली बार १८४१ मे प्रकाशित हुई एवं जल्दि ही बिक गयी। १८४७ मे इसका दोबारा प्रकाशन हूअा। १८५५ तक गालिब शिकायत करते थे कि उन्हे पुस्तक कि एक भी लिपि नहीं मिली, प्रकाशकों ने सब किताबें ले ली थी। उनकी फारसी शायरी का एक संग्रह १८४५ मे भी प्रकाशित हूअा।